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व्यक्तित्व विकास

व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उसे महान बनाता है। प्रत्येक व्यक्ति में वे ही गुण है जो एक जगत सबसे परफेक्ट व्यक्ति अथवा आत्मा के पास होते हैं जिस परमात्मा कहते हैं। यह विश्वास आत्मबल ही व्यक्तित्व विकास की प्रथम सीढ़ी है। सबसे पहले प्रतिदिन आप जैसा बनना चाहते हैं उसे अपने अंतरंग में अनेक बार दोहराईए, फिर बार-बार उसे ही उच्चारण में लाइए। यह प्रक्रिया ही आप को उस ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। जो बात आप बार-बार दूसरों को प्रेरित करने के लिए कहते हैं वह बात कहीं न कहीं सर्वप्रथम स्वयं को प्रेरित करती है। हीन भावना आते ही जीवन में हास प्रारंभ हो जाते हैं। चिंताएं, टेंशन, डिप्रेशन, स्ट्रेस ये सभी आत्म विश्वास से भरे व्यक्ति के अंदर कभी भी स्थान नहीं प्राप्त करते। Spritual way of Personality Development आत्म विश्वास आपसे क्या कह रहा है सर्व प्रथम आत्म अर्थात् स्वयं पर किया गया श्रद्धान, आस्था। स्वयं की पहचान । अध्यात्म ही अपनी आत्म तत्व पर विश्वास के बल से स्वयं को इस जगत का सबसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व परमात्मा बना लिया करता है। भगवान महावीर हों या इस जगत में हो चुके अनंतानंत परमात्मा वे सभी सामान्य ही मनुष्य थे किन्तु आत्मबल से व्यक्तित्व का विकास कर वे ही आत्म से परमात्मा बन गए। आपके पास भी वहीं अनंत शक्तियाँ है वहीं बल है मात्र उसे पहचानें। यदि आप IAS बनना चाहते हैं तो अंतरंग में प्रतिदिन अपने को एक IAS Officer ही देखें... मैं नहीं बन पाऊंगा... मेरी तैयारी नहीं है अथवा अपने अंदर उत्साह में कभी आपको कभी IAS नहीं बने देगी। आप यदि written Test निकाल भी लेंगे तो भी इंटरव्यू में आप आत्मविश्वास की कमी के कारण रह जाएंगे। सबसे शक्तिशाली मंत्र है मैं अनंत शक्ति का पिंड हूं "अनंत शक्ति स्वरूपोहं" जब भी आप अपने को हतोत्साहित अनुभव करें अपने अंतर में इस सूत्र को बार बार दोहराएं यह सूत्र/मंत्र आपको अनेक प्रकार की चिंताओं से मुक्त कर देगा आपके सम्मुख संपूर्ण मार्ग सहज ही दिखने लग जाएंगे।

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आत्म नियंत्रण बंधन नहीं है

अनियंत्रित वाहन सदैव दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। युवाओं की मानसिक, शारीरिक दुर्घटनाओं का बड़ा कारण है। माता पिता धर्म का अनुशासन रूप नियंत्रण को जब हम बंधन समझने लगते हैं, वहीं से हमारा पतन का रास्ता प्रारंभ हो जाता है। जिस प्रकार वाहन को नियंत्रण करने हेतु स्टीयरिंग एवं ब्रेक की आवश्यकता होती है अन्यथा वाहन मार्ग पर नहीं चल सकता उसी प्रकार जीवन में संस्कारों की स्टीयरिंग एवं माता पिता और धार्मिक अनुशासन रूप ब्रेक की आवश्यकता होती है। जिन के जीवन में इन दिनों का अभाव है वहाँ नियम से दुर्घटना होती ही है। नैतिकता एवं धार्मिकता जीवन में बंधन नहीं अपितु जीवन की तेज रफ्तार में भी जीव को सुरक्षित गंतव्य पर पहुँचाने का कार्य करते हैं। लक्ष्य पर पहुंचने के लिए जितना नियंत्रण स्वयं पर होगा वहीं निर्विघ्न रूप से लक्ष्य तक पहुंचाने वाला है। अध्यात्म विद्या आत्म नियंत्रण की वह परम विद्या है जो जीवन के छोटे-मोटे लक्ष्य ही नहीं किंतु स्वयं को भगवान बनाने में भी सक्षम है। आत्म अनुशासन में बंधा व्यक्ति समाज, परिवार देश का गौरव होता है। युवा जो आत्म नियंत्रण रखना नहीं जानते वे ही माता पिता से दूर होने पर खोटी संगति एवं खोते कार्यों से स्वयं का तो अहित करते ही हैं नियम से परिवार और समाज को कलंकित करते हैं।

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स्वयं से आँख मिला सकने वाले कार्य करें।

अच्छा व्यक्तित्व वही कहा जाता है जो छुपकर भी कभी बुरे कर्म नहीं किया करता। दुनिया की नजरों में अच्छा होना और वास्तविकता में अच्छा होना इन में बहुत बड़ा अंतर है। दुनिया के सामने अच्छा होने पर भी यदि मन में अंतरंग में खोट है वह व्यक्ति आँखें चुराता ही मिलेगा। जो व्यक्ति आँखें नहीं मिला पाते वे नियम से कुछ छुपाया करते हैं। बालक भी जब छुपकर कुछ गलत कार्य कर लेता है अथवा अज्ञानता में गलती करता है तो वह माँ पिता से बात करता है और तुरंत पकड़ा जात है। किंतु कुछ लोग बहरूपिया होते हैं वे इतने अच्छे से बाहरी भेष धारण करते हैं कि सच्चा व्यक्ति भी उनके आगे फीका दिखाई देता है या यूँ कहें गिरगिट तो कम रंग बदलता है ऐसे व्यक्ति दूसरों को रिझाने के लिए अथवा छलने ठगने के लिए कब रंग बदल लेते हैं पता ही नहीं लगता । गिरगिट अपने शिकार को धोखा देने एवं स्वयं की शत्रुओं से रक्षा करने अपना रंग बारबार बदलता है ऐसे लोग दूसरों को ठगने फसाने के लिए नए नए तरीके अपनाते हैं। वही श्रेष्ठ व्यक्तित्व होता है जो कभी दूसरों को ठगता नहीं न ही ऐसे व्यक्तियों का शत्रु होता है। अंतरंग में छल कपटी जीवन का अभाव ही सबको मित्रवत् बना दिया करता है। अध्यात्म विद्या में जीने वाले ऐसे योगी दिगंबर मुनि का जीवन छलने के लिए विभिन्न रूपों को धारण करने जैसा बहरूपिया रूप नहीं होता। भगवान महावीर और उनके अनुयायि कभी भी छल से किसी का भी अहित न ही करते हैं न ही सोचते हैं । यही विद्या यदि सभी के जीवन में आ जाए तो संपूर्ण विश्व जीवन जीने के लिए उत्कृष्ट स्थान बन जाए। वही व्यक्ति श्रेष्ठ व्यक्तित्व का धारी होता है जो दूसरों से आँख मिलने के साथ साथ अपने आप से आँख मिलने का साहस रखता हो। स्वयं से आँख मिलती रहे यदि यह कार्य सीख लिया जाए जो किसी दूसरे को जीवन में सुधार की प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होगी। वही कार्य करना उचित है जो छुपकर नहीं किया जाता एवं स्वयं से आँख मिलाने की सामर्थ्य बनी रहे।

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समस्याओं का समाधान: स्वयं से करें बात

एक अच्छे व्यक्तित्व निर्माण में सभी व्यक्तियों के उत्तर नहीं देना चाहिए। वचनों से ज्यादा मौन में अधिक ताकत होती है। अधिक सुनना एवं कम से कम बोलना आपके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है। जब आप वचनों से सबको संतुष्ट करने लग जाते हैं तो आपका बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं। यदि आप सही हैं तो किसी बातों की परवाह किए बिना ही अपनी सारी शक्ति अपने कार्यों की ओर केंद्रित कीजिए कार्य सफल होने पर अनेक लोगों के प्रश्नों के उत्तर बिना कहे ही मिल जाएंगे। अपने जीवन में लोगों से अधिक स्वयं से जो बात करना सीख लेते हैं वे बनावटी मौन धारण नहीं करते किंतु बाह्य जगत से बात करने की अपेक्षा उन्हें स्वयं से बात करना अच्छा लगता है। जब हम अपनी ऊर्जा बाह्य व्यक्ति से बात करने में लगाते हैं वहीं आध्यात्मिक व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति अपनी ऊर्जा को संरक्षित कर स्वयं से बात कर उस ऊर्जा को और अधिक बढ़ा लिया करता है। इसका अर्थ गुमसुम रहना नहीं है यह मंद बुद्धि भी नहीं ऐसा व्यक्ति निर्णय की क्षमता से युक्त होता है। जब जीवन में समस्याएं आती है तब जीव गुमसुम सा रहने लगता है। यदि आप इस दौर से गुजर रहें है तो स्वयं से बात करना सीखें इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि आप पेन डायरी उठाएं और अपने मन में उठने वाले डर, समस्याओं को उसमें लिखकर स्वयं से ही उस डर और समस्या का सकारात्मक समाधान प्राप्त करें। प्रकृति बिना बोले ही बहुत से उपदेश देती है प्रकृति के इन रहस्यमयी उपदेशों को ग्रहण करने की शक्ति ही अध्यात्मिक जीवन में स्वयं आने लग जाती है। उस चिड़िया से सीखिए जो बिना हल्ला किए अनेक बार आसमान में उड़ान भर लिया करती है। चींटी से सीखिए जिस कार्य को करना प्रारंभ करती है कितनी भी समस्याएं आने पर कभी हिम्मत नहीं हारती। पेड़ पौधे सदैव आनंद में झूलते हैं इसलिए ही अनेक पास रहने वाले स्वयमेव ही आनंद पाते है। स्वयं से उत्तर पाने की लिए आपका ध्यान पर वस्तुओं में नहीं जाना चाहिए इसके लिए शांत होकर आंखों से झुकाकर चिंतन करें। आप पाएंगे अनेक रास्ते जीवन में खुले हुए हैं। सभी समस्याएं जीव ने स्वयं ही निर्मित की हैं तो समाधान भी स्वयं के पास ही मिलता है। अनेक ऐसे कार्य जो करने योग्य न होने पर हम कर लिया करते हैं वहीं हमारे मन में असामंजस्य ही स्थिति खड़ी कर देते हैं किंतु स्वयं को अच्छा बनाने का चिंतन और दृढ़ निश्चय स्वयं से किया गया वादा आपको इस असामंजस्य से बाहर ले आता है। यही कारण ही अध्यात्मिक जीवन ही परम आनंद का कारण हो जाता है। वही व्यक्ति जो आध्यात्मिक है का चेहरा सदैव ही दमकता और आकर्षित करने वाला हो जाया करता है।

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आत्म अवलोकन: एक अद्भुत तरीका

व्यक्तित्व विकास में स्वयं का अवलोकन करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जो अपने जीवन में स्वयं जीवन को मुड़कर अध्ययन नहीं करते वे कभी भी अपने जीवन में सुधार नहीं कर सकते। हमारा जीवन कब बुरा बन जाता है हम कभी मुड़कर देखते छोटी सी बुराई हमारी सभी अच्छाइयों पर हावी हो जाती है। सब कुछ अच्छा होने पर भी एक भी आपकी बुरी प्रवृत्ति आपके जीवन के लिए अभिशाप बन जाती है। जिस प्रकार कोई लंबी यात्रा अपनी कार से तय कर रहा है लक्ष्य दिल्ली से बैंगलोर जाने का है और रोड पर चलना भी प्रारंभ है किंतु बैंगलोर की दूरी बताने वाला एक भी माइल स्टोन से यह पता चल जाता है कि दूरी कम होती जा रही , मंजिल पास आती जा रही तो उत्साह बना रहता है एवं यह भावना जागृत हो जाती है कि कुछ दूर और बस मंजिल मिलने वाली है। यही प्रक्रिया हमें अपने व्यक्तित्व विकास के लिए अपनाना चाहिए हमने अच्छा बनने के लिए कितनी दूरी तय की है। यदि आपके अंदर कोई बुराई है बेड हैबिट है उसे छोड़ने के लिए कहा हमने वास्तविकता में प्रयास किया है। किया है तो हम कितना आगे आ गए हैं। मान लीजिए आपका स्वभाव बहुत चिड़चिड़ा होता जा रहा है यह आप भी जानते है किंतु आपने कभी पलटकर नहीं देखा किन-किन बातों पर मैं क्रोधित , एग्रेसिव, अथवा खेड़सिन्न हो जाता हूँ। इसलिए जब भी वह सिचुएशन आती है सदा ने वैसे ही रिएक्ट करता हूँ वह झुंझलाने की प्रक्रिया दोहराया हूँ। आप यदि आपको अपने व्यक्तित्व को एक अच्छे व्यक्तित्व की ओर ले जाना है तो आज से ही रात्रि में सोने के पूर्व अपने दिन भर का एनालिसिस कीजिए आज सुबह से शाम तक में किन-किन बातों पर कितनी बार झुंझला उठा । दूसरे दिन और पहले दिन में इस संख्या में कोई अंतर आया या नहीं , अगर हम ऐसा नहीं करते है तो बैंगलोर जाना है ऐसी रट लगा लेने से कोई बैंगलोर नहीं पहुँच सकता ऐसे ही अपने जीवन में जब हम अच्छा होना चाहते है लेकिन असके लिए एक भी कदम नहीं बढ़ाते हैं, बस यही कारण है हम अच्छा नहीं बन पाते। यह प्रक्रिया जो रात्रि में सोने के पूर्व करने को कहा गया है। अध्यात्मिक व्यक्तित्व का व्यक्तित्व इस आत्म अवलोकन ही प्रक्रिया को निरंतर करता है। यही कारण है कि वह अपने जीवन को प्रति समय सुधार करता हुआ श्रेष्ठतम व्यक्तित्व का धनी हो जाता है।

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नकारात्मकता से करें स्वयं की रक्षा

विचारों की धारा ही व्यक्तित्व विकास अथवा हास का कारण होती है। सही सोच ही सही दिशा एवं सही दशा ही ओर अग्रसर करती है। बाह्य जगत अथवा बाह्य जगत के लोगों के विषय में हम जो विचार धारा बना लेते हैं वहीं आपके व्यक्तित्व का दर्पण बन जाता है। पीलिया से ग्रसित व्यक्ति को जैसे हर वस्तु पीली ही नजर आती है धवल दुग्ध भी उसे दोष पूर्व अर्थात पिला ही दिखता है। वैसे ही नकारात्मक सोच। विचार धारा जिसके जीवन में प्रवेश कर जाती है उस व्यक्ति को जगत और जगत के सभी व्यक्ति गलत ही लगते हैं। चश्में को साफ करने की आवश्यकता है। अध्यात्म विद्या स्वयं के विचारों की धूल को साफ कर दिया कर देत है यही कारण है कि अध्यात्म के अभाव में लोग बाहर में अच्छे तो दिखते हैं किंतु उनके मन में सदा ही लोगों के प्रति कलुषता का भाव रहता है। ये व्यक्तित्व उस स्वर्ण कलश के समान है जिसमें मल भरा हुआ है स्वयं तो दुर्गंध में जीवन जीते हैं और जब वचन रूपी ढक्कन खुलता है तो संपूर्ण वातावरण को दूषित दुर्गन्धित कर देते हैं। गांधी जी के तो तीन बंदर थे , बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो जगत को सीख देते हैं। किंतु भगवान महावीर अथवा जिन दर्शन में निहित अध्यात्म विद्या में यह बात सर्वोपरि है कि किसी का बुरा करना तो दूर की बात है किसी का बुरा मत सोचो। यदि जीव किसी के बारे में बुरी सोच को छोड़ दे तो न तो उसकी दृष्टि खोटी हो सकती है न ही खोटे संगीत, ध्वनि की ओर वह आकर्षित हो सकता है न ही खोटे नकारात्मक वचन उसके मुख से निकल सकते हैं। सकारात्मक सोच वाला कभी खोटी संगति ने नहीं पड़ सकता। स्वयं के अंदर चलने वाले विचार ही स्वयं के आनंद को भंग करते हैं बुरी सोच ही ग्लानि का कारण बनती है। किसी स्त्री, महिला, या अपने ही मित्र मंडली अथवा चलते हुए राह में लड़कियों पर खोटी दृष्टि और खोटे विचार रखने वाले व्यक्ति अपने अन्दर में रावण की विचार धारा के धारक होते हैं। अध्यात्म जीवन प्राणिमात्र के प्रति शुभ और सकारात्मक सोच रखने के संस्कार का काम करता है वही व्यक्ति श्रेष्ठ कहा जा सकता है जिसने स्वयं पर कार्य करना स्वयं को सुधारना प्रारंभ कर दिया है। किसी व्यक्ति वस्तु के प्रति अथवा स्वयं के प्रति भी नकारात्मकता को मात्र पाँच दिन में परिवर्तित किया जा सकता है। एक पाषाण की प्रतिमा में मंत्रों के माध्यम से प्राण प्रतिष्ठा एवं विशेष पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में भगवान दिखना प्रारंभ हो जाती है। यही प्रक्रिया अपने अंदर सीख लेनी है पेन डायरी के माध्यम से आप जैसा बनना चाहते हैं वैसा प्रतिसमय विचार करना प्रारंभ कर दीजिए आप के जीवन में पांच दिन में परिवर्तन दिखने लगेगा। जैसी सोच आप बना लेते हैं वैसा ही जीवन बनने लगता है।

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कूटनीति नहीं धर्म नीति से जीवन जिएं

कूटनीति अथवा राजनीति से जीवन के स्थान पर धर्म नीति से जीने वाला ही सबके हृदयों में अपना स्थान बना लेता है। जहाँ कूटनीति , राजनीति स्वयं का मात्र लाभ देखती है मेरा काम बनना चाहिए दूसरे का काम बने अथवा बिगड़े इससे मुझे कोई प्रयोजन नहीं है ऐसी बुद्धि वाला व्यक्ति न तो आनंदित रह सकता है न ही अपनी छवि वह अन्य के हृदयों पर अंकित कर सकते हैं। कूटनीति साम दाम दंड भेद पर आधारित है शांतिवर्ता से कीमत मूल्य देकर , दंडित करके अथवा भेड़-भुट डालकर अपना कार्य सिद्ध करने का नाम कूटनीति है। वहीं धर्मनीति यह कहती है कि स्व का भी हित हो और पर का भी हित हो वही कार्य करना उचित है धर्मनीति पर का अहित सोचने वाले को भी अच्छा नहीं स्वीकारती। बड़ी-बड़ी कंपनियां यदि इथिक्स के बिना अपना कार्य करती है तो कभी भी विश्वास की पात्र नहीं होती। एक बार जीवन में की गई कूटनीति व्यक्ति की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह अंकित कर देती है। जो व्यक्ति मात्र अपना काम निकले ऐसी विचार धारा का है न तो उसके जीवन में कोई मित्र रह सकता है इतना ही नहीं स्वजन अर्थात् अपने परिवार जन भी ऐसें व्यक्तियों का साथ नहीं देते। विश्वसनीयता चाहिए तो अपने बुद्धि को धर्म के अनुसार प्रवृत्त करना ही श्रेष्ठकर है । दूसरों का हित चाहने वाला सदैव ही प्रत्येक व्यक्ति का विश्वास का पात्र होता है। जहां अधिक लाभ हो ऐसी धर्म नीति में यदि प्रारंभ अपस्था में अल्प हानि भी हो रही है तो स्वीकार कर लेना उचित है। सबके प्रति अच्छा सोचने वाले का सदैव ही अच्छा होता है जो अपना ही अच्छा सोचते हैं दूसरों का बुरा या भला इससे कोई प्रयोजन नहीं वे कभी भी अपना जीवन अच्छा नहीं बना सकते ।

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वचन और भोजन से व्यक्तित्व की पहचान

व्यक्ति की पहचान करना हो तो उसके भोजन और वचन पर ध्यान देना चाहिए। यदि इन दोनों में से एक भी मानव जीवन के अनुरूप नहीं है तो वह व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता। मुख खुलते ही व्यक्ति की कुलीनता का ज्ञान हो जाता है उच्च कुल है अथवा नीच कुलों की प्रवृति वाला है। जब वचनों में बात-बात पर तू तड़ाके की भाषा हो, वचनों में कर्कषता एवं कठोरता हो बात-बात पर अपशब्द, गाली देता हो बात करने में अहंकार टपकता हो वह व्यक्ति कभी किसी के सम्मान का पात्र नहीं बन सकता। अगर व्यक्ति चिड़-चिडे स्वभाव का है तो वह उसके वचनों में दिखाई दे जाता है। वह गंभीर, धैर्यशाली, समय सूचकता का ज्ञाता, अपनी बात अल्प एवं मधुर शब्दों में रखा करता है। स्वयं का निर्णय करना हो तो अपने वचनों पर ध्यान देना प्रारंभ कीजिए। आपका घर और बाहर में वचनों में समानता नहीं होती है। जब आप बाहर वालों से बात करते है तो बहुत शालीनता से बात करते हैं किंतु वहीं आप अपने माता पिता , भाई बहन से फुलझड़ी की तरह छोटी छोटी बातों पर चिड़चिड़ाते हैं। यदि ऐसा है तो आपका यह दोहरा जीवन आपके अंदर झुंझलाहट पैदा करता है। आपको सदैव दुखी करेगा। विचार कीजिए यदि आप घर में बात करते समय अथवा पेरेंट्स को उत्तर देते समय सेंटेंस को अंत में खींच देते हैं तो आप स्वयं से ही परेशान व्यक्ति हैं। जैसे माँ के कुछ कहने पर आप उत्तर देते हैं हाँ हाँ कर लेंगे नाअअ। यह भाषा, वचन शैली आपके सम्मान को कम कर दिया करती है। वचन सुंदर बोलने वाले यदि बहुत मिल भी जाएं तो उनके भोजन को जरूर देख लेना चाहिए, यदि वह व्यक्ति मादक और तामसिक भोजन को करने वाला है अंदर में कुछ और है और बाहर ने बहरूपिया , छलिया है ऐसे श्रेष्ठ वक्ता भी मात्र अपनी जेब भरने के लिए बहरूपिया का भेष बनाएं हैं। यदि आपके जीवन में भी मादक पदार्थ जैसे किसी भी प्रकार का नशा , शराब , तम्बाकू यहाँ तक की स्वीटी सुपारी, रजनी गंधा, हुक्का जैसी आदत है आप एडिक्टेड व्यक्ति हैं चाहे आप पार्टी के नाम पर करें अथवा कभी-कभी करें अथवा स्टेटस सिंबल के नाम पर करें, इसे किसी भी रूप से एक अट्रैक्टिव पर्सनेलिटी के रूप में नहीं देखा जा सकता। साथ ही साथ यदि तामसिक भोजन अर्थात् अंडा, माँस, मछली, जैसा भोजन चाहे चॉकलेट, आइसक्रीम, पिज्जा, बर्गर, बिरयानी अथवा फाइल स्टार, 3 स्टार के नाम पर किया जाए वह सब आपके अंदर क्रुएलिटी को दिखा देता है अंदर में जीवों के प्रति आपको कोई दया, करुणा नहीं आप अपने स्वाद के लिए किसी को भी मार कर खा सकते हैं। ऐसे लोग विश्वसनीय नहीं कहे जा सकते। यही कारण ही की सात्विक जीवन शैली जहाँ सात्विक शुद्ध आहार, निर्जन्तुक(शाकाहारी) ही भक्षण किया जाता हो वही अत्यंत शांत सरल हृदयी होता है। अध्यात्मिक जीवन पद्धति में भोजन और वचन दोनों ही शुद्ध होना चाहिए तभी आप श्रेष्ठता का स्वयं ने अनुभव कर सकते हैं। अतः इन दोनों वचन एवं भोजन पर सबसे पहले नियंत्रण कर एक डेशिंग एवं परफेक्ट पर्सनेलिटी की ओर बड़ा जा सकता है।

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सही दिशा में उठाएं कदम - रास्ता अकेले ही तय करना होगा

सही दिशा में उठाया एक कदम भी लक्ष्य/मंजिल के पास पहुंचा दिया करता है।
हम सभी जीवन यह तो जानते हैं क्या अच्छा है, क्या बुरा है लेकिन हमारे कदम किस ओर हैं यह भूल जाया करते हैं। आपको दो पैर हैं और आप चाहे की मैं दोनों विपरीत दिशाओं में एक साथ चल सकूं यह संभव नहीं। होता यह है, हम बुराइयों की तरफ अपना पैर बढ़ाए हुए है और दूसरा पैर अच्छाई की दिशा में भी रखकर चलना चाहते हैं, यह कैसे संभव है।
अतः दिशा निर्देशन की आवश्यकता है जब हमने अपने व्यक्तित्व को अच्छा बनाने का विचार किया है तो अपनी बुराइयों की दिशा में बढ़े हुए कदम यदि नहीं रोके जाएंगे तो आप कभी अच्छे नहीं बन सकते।
जिस दिशा में पहला कदम होता दूसरा कदम अपने आप ही उस दिशा में ही उठता है।
हम चौराहे पर खड़े होकर दस कदम अच्छे होने की ओर चलते हैं तो पुनः हमारे पुराने संस्कार, अरे एक बार कोई बुराई कर भी लेंगे तो क्या।
जैसे ड्रिंक करना अच्छी बात ना होने पर भी पार्टीज में लेने में क्या होता है ऐसा सोच कर हम पुनः दस कदम विपरीत दिशा की ओर बढ कर आ जाते और सोचते हैं अच्छी आदतों से लक्ष्य नहीं मिलता फिर नई दिशा में दस कदम चलना प्रारंभ करते, दृढ़ता एवं सत्यता का बोध होने पर भी हम अपने आपको अच्छे मार्ग पर नहीं चला पाते।
और यदि कोई अपने व्यक्तित्व विकास की दिशा में बुरी आदतों से बचता हुआ अधिकतम जीवन पद्धति और पश्चात जीवन संस्कृति से जिसमे Club, Pub, मदिरा, नशा, मौज मस्ती, हुक्का, शराब, लड़की बाजी से निकलकर कुछ आगे बढ भी जाते हैं तो वह स्वयं को आगे अकेला महसूस करता है और उसके सारे ही साथी उसे कहते हैं तुम्हारा जीवन तो बरबाद है तुमने तो जीवन का कोई आनंद ही नहीं लिया और पुनः वह उनकी बातों में आकर उसी चौराहे पर आकर खड़ा हो जाता है।
अच्छा होने का मार्ग सामूहिक रूप से तय नहीं किया जा सकता वहां तो अकेले ही चलना होगा है और जी लगातार उस ओर बढ़ता है पहले तो लगता है की मैं दोस्तों से दुनिया से अलग हो गया लेकिन जब वह एक आदर्श के रूप में जीवन प्रस्तुत करता है तो सारे के सारे मित्र एवं लोग उसी के पीछे चलने तैयार होते हैं अथवा उससे दिशा निर्देशन लेने खड़े होते हैं।
IAS की तैयारी करने वाला मित्रों से बहुत दूर हो जाता है, अनेक प्रकार के शौंक भी छोड़ने पड़ते हैं लेकिन एक एक सही दिशा का कदम जब IAS जैसी मंजिल पर पहुंचा देता है तब सब उसी की प्रशंसा एवं दिशा निर्देशन प्राप्त करने के लिए तत्पर हो जाते हैं।

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The Art of Personality Development

Your personality is your true identity—it is what defines you and shapes your journey. Every individual possesses the same qualities that the most enlightened souls, whom we call the Supreme Soul (Paramatma), embody. The foundation of personality development begins with unwavering faith in your own potential. Start by visualizing the person you aspire to become. See yourself achieving your dreams, living the life you desire. Let this image sink deep into your consciousness every single day. Speak about it, affirm it, and believe in it. The words you use to inspire others are often the words that first inspire you. Doubt is the beginning of downfall. The moment you allow self-doubt to creep in, you open the door to worry, stress, and anxiety. But a person filled with self-confidence stands strong, untouched by fear and negativity.
The Spiritual Path to Personality Development
What is self-confidence? It is, at its core, faith in oneself. It is the realization of who you truly are. Spirituality teaches us that by recognizing the power within, we can elevate ourselves to the highest state of being.
Lord Mahavira and the countless enlightened souls who attained liberation were once ordinary human beings. But through the power of self-belief and unwavering determination, they transformed themselves into the Supreme Soul. This infinite strength is not exclusive to them—it resides within you as well. The key is to recognize it, awaken it, and harness it.
If you dream of becoming an IAS officer, start by seeing yourself as one. Picture it vividly Feel it. Let it become your reality even before it manifests. But if you constantly think, “I am not prepared,” or “I don’t think I can do it,” you are unknowingly blocking your own success. Even if you clear the written exam, a lack of self-belief could hold you back in the final interview.
The Mantra of Infinite Power
Whenever you feel discouraged, remind yourself:
“I am the embodiment of infinite power.” “Anant Shakti Swaroopoham.” (I am the very essence of boundless energy.)
Repeat this to yourself as often as needed. Let it fill your being with strength and clarity. Soon, the obstacles that once seemed overwhelming will fade away, and the path ahead will reveal itself effortlessly.
You are not limited. You are not weak. You are a powerhouse of infinite potential waiting to be awakened.