मुनि श्री की पूजन
रचयिता-
(विशुद्धरत्न मुनि श्री 108 अनुपम सागर जी महाराज)
स्थापना-
हे गुरुजी तेरे साथ रहूं मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
मन मंदिर में तेरी हमने एक तस्वीर लगाई
सबसे प्रीत हटा के हमने तुम से प्रीत लगाई
तू मंजिल राहगीर बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्) ।
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्) ।
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्) ।
जल-
मैं रोगी तू वैद्य हमारा औषधपान कराना
भटक रहा हूं भवसागर में हमको पार लगाना
तू मांझी तेरी नाव बनूं मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
चंदन-
तड़प रहा हु गम की धूप में अपनी छांव बनाना
चंदन सम शीतलता देकर अपना सा है बनाना
तू तरुवर तेरी शाख बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।
अक्षत-
सम्यक पथ की राह दिखाकर हमको सदा चलाना
क्या अपना है सच्चा प्यारा उसका बोध कराना
तू प्रतिमा तेरी वेदी बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
पुष्प-
इंद्रिय भोगो के खातिर खुद को है भोग बनाया
अपनो के खातिर आजतक ना खुद को पहचाना
तू ज्ञानी तेरा गणधर बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
नैवेद्य-
रसना के खातिर है हमने कितना भोग बनाया
सदियों सदियों निकल गई पर पूर्ण नहीं कर पाया
तू वीणा तेरा तार बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप-
मोह लोभ का तम छाया है मिथ्या पूर्ण नशाना
चरण कमलद्वय हृदय रखो और केवलज्ञान बढ़ाना
तू दीपक तेरी ज्योत बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
धूप-
कर्मों के खातिर भव भव के हमने भ्रमण किया है
हुआ बोध सत्यार्थ आज तो तेरा नाम लिया है
तू ध्यानी तेरा ध्याता बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
फल-
हर ऋतुओं के फल हम लाकर चरणों आज चढ़ाऊं
पूजन विधि हम कुछ न जाने किस विधि से तुम्हे मनाऊं
तू वीरा तेरा भक्त बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
अर्घ्य-
जिनशासन के अनुशासन का तुमने ज्ञान कराया
जैनागम के वचनामृत से श्रुत मंथन करवाया
तू लेखक तेरी कलम बनू मैं
हर दिन तेरे साथ रहूं मैं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला-
आदिसिंधु महावीर कीर्ति जिनका मैं ध्यान लगता हूं
विमल विरागता पाने को मैं शील धर्म अपनाता हूं
स्यादवाद का नाद सदा हो यही भावना भाता हूं
समत्व भाव से हो विशुद्ध मन चरणों शीश झुकाता हूं
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
विशेष जयमाला-
आदिसिंधु महावीर कीर्ति जिनका मैं ध्यान लगता हूं
विमल विरागता पाने को मैं शील धर्म अपनाता हूं
स्यादवाद का नाद सदा हो यही भावना भाता हूं
समत्व भाव से हो विशुद्ध मन चरणों शीश झुकाता हूं
तन्मय हो चरणों में स्वामी भक्तों ने ध्यान लगाया है
(जन्मदिवस/दीक्षादिवस) की तुम्हे बधाई पूजन से मन हर्षाया
अनुपम स्वर भक्ति स्वीकारों अर्घ भेंटने आया हूं
रहो सदा जयवंत धरा में यही भावना लाया हूं
अतिशय नमन करे हर अब धवल भाव वर्णित करता
चरणों का अभिषेक सदा हो अतिशय महिमा गुण गाता
संयम समर सागर की भक्ति पूजन में स्वीकार करो
रहे कृपा का हाथ माथ में अनुपम ये आशीष भरों
ॐ ह्र: श्री समत्वसागर मुनीन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।